स्वामी जी का जन्म वि.सं.1960 ( ई.स.1904 ) में राजस्थान के नागौर जिले के माडपुरा गाँव में हुआ था । और उनकी माताजी ने 4 वर्ष की अवस्था में ही उनको संतों की शरण में दे दिया था । आपने सदा परिव्राजक रूप में सदा गाँव गाँव शहरों में भृमण करते हुए गीता का ज्ञान जन जन तक पहुँचाया । और साधु समाज के लिए 1 आदर्श स्थापित किया कि साधु जीवन कैसे त्यागमय । अपरिग्रही । अनिकेत और जल कमलवत होना चाहिए । और सदा 1-1 क्षण का सदुपयोग करके लोगों को अपने में न लगाकर सदा भगवान में लगाकर । कोई आश्रम । शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर । दूसरो को मान देकर दृव्य संग्रह । व्यक्ति पूजा से सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्र की कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान में लगें । ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगा तट स्वर्गाश्रम हृषिकेश में आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.2062 ( 3-7-2005 ) बृह्म मुहूर्त में भगवद धाम पधारे । संत कभी अपने को शरीर मानते ही नहीं । शरीर सदा मृत्यु में रहता है । और मैं सदा अमरत्व में रहता हूँ । यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । संतों का जीवन उनके विचार ही होता हैं । ब्लाग - सतसंग ही साधना है
15 October 2012
सतसंग ही साधना है
स्वामी जी का जन्म वि.सं.1960 ( ई.स.1904 ) में राजस्थान के नागौर जिले के माडपुरा गाँव में हुआ था । और उनकी माताजी ने 4 वर्ष की अवस्था में ही उनको संतों की शरण में दे दिया था । आपने सदा परिव्राजक रूप में सदा गाँव गाँव शहरों में भृमण करते हुए गीता का ज्ञान जन जन तक पहुँचाया । और साधु समाज के लिए 1 आदर्श स्थापित किया कि साधु जीवन कैसे त्यागमय । अपरिग्रही । अनिकेत और जल कमलवत होना चाहिए । और सदा 1-1 क्षण का सदुपयोग करके लोगों को अपने में न लगाकर सदा भगवान में लगाकर । कोई आश्रम । शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर । दूसरो को मान देकर दृव्य संग्रह । व्यक्ति पूजा से सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्र की कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान में लगें । ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगा तट स्वर्गाश्रम हृषिकेश में आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.2062 ( 3-7-2005 ) बृह्म मुहूर्त में भगवद धाम पधारे । संत कभी अपने को शरीर मानते ही नहीं । शरीर सदा मृत्यु में रहता है । और मैं सदा अमरत्व में रहता हूँ । यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । संतों का जीवन उनके विचार ही होता हैं । ब्लाग - सतसंग ही साधना है