12 May 2017

प्रेतनी का मायाजाल

बहुत कम लोग इस अज्ञात तथ्य से परिचित होंगे कि प्रथ्वी पर होने वाली सभी अकाल मृत्यु और स्वाभाविक मृत्यु के बाद लगभग तीस प्रतिशत लोग ‘प्रेतगति’ को प्राप्त होते हैं । इसमें अकाल मृत्यु वालों का दस से पन्द्रह प्रतिशत होता है और लगभग पन्द्रह से बीस प्रतिशत ही स्वाभाविक मृत्यु से मरे लोगों का होता है ।
बीमारी, दुर्घटना, हत्या, टोना आदि द्वारा अकाल मृत्यु को प्राप्त हुये लोग, अभी उनकी आयु शेष रहने से, अपने सूक्ष्म शरीर में आयु का ठीका पूर्ण होने तक भटकते रहते हैं । ये साधारण और अक्सर बङे प्रेतों से डर कर रहने वाले प्रेत होते हैं ।
लेकिन खास तौर पर स्वाभाविक मृत्यु मरे लोग अज्ञानतावश उल्टे, सीधे, नीच, और अज्ञात देवी देव पूजने से प्रेतगति को प्राप्त होते हैं । क्योंकि अनजाने में वे स्वयं ही अपना संस्कार उनसे जोङ देते हैं । प्रायः ऐसे प्रेत पहले किस्म की अपेक्षा सबल होते हैं ।
इसके अतिरिक्त एक तीसरी श्रेणी उन लोगों की भी होती है, जो जानबूझ कर प्रेत, मसान, जिन्न आदि को लालच हेतु या शौकिया सिद्ध करते हैं या अन्य तरीकों से उनकी सेवा करते हैं, सम्पर्क में रहते हैं । ये भी अन्त समय प्रेतगति को ही प्राप्त होते हैं । ये बङे और खतरनाक और ताकतवर प्रेत होते हैं ।
इसके भी अलावा कुछ गलत ढंग से वामपंथी साधनायें करने वाले, जिनमें शव साधना, शमशान साधना, कापालिक आदि करने वाले भी अन्त में ऐसी ही गति को प्राप्त होते हैं । इसी प्रकार की साधनाओं में एक ‘विशेष’ साधना और है, जो अक्सर लोग भक्ति समझ कर करते हैं और अधिकांश स्त्री पुरुष पूजा सोच कर करते हैं (किसी कारणवश इसको बताना उचित नहीं) ये भी अन्त में इसी गति को प्राप्त होते हैं । और इनमें से बहु प्रतिशत नीच देवों के गण बनते हैं ।
मनुष्य जीवन जितना जीते जी महत्वपूर्ण है । उससे कहीं ज्यादा मरने पर समस्याये हैं । क्योंकि एक बार पंच तत्वों से बना ये भौतिक शरीर छूट कर यदि अति दुखदायी और कष्टदायक प्रेतयोनि को प्राप्त हो जाता है । तो बङे लम्बे समय तक उस जीव को अनेकानेक प्रकार के दारुण कष्टों को भोगना होता है ।
प्रस्तुत कहानी ऐसे ही कुछ तथ्यों और स्थितियों का वर्णन करती है ।
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हालांकि कुसुम भी कुछ थकान सी महसूस कर रही थी । पर कामवासना के तेज कीङे जैसे अब उसके अन्दर कुलुबुला रहे थे । जिनके चलते वह अजीब सी बैचेनी महसूस कर रही थी । अभी वह दयाराम से इतनी खुली भी नहीं थी कि उसे जगाकर सम्भोग का प्रस्ताव कर देती ।
अतः उसने एक बेबसी की आह सी भरी, और सूनी बगिया के चारों तरफ़ देखा ।
फ़िर हार कर वह एक पेङ से टिककर बैठ गयी और उसकी निगाह वृक्षों पर घूमने लगी ।
तब अचानक ही उसके शरीर में जोर की झुरझुरी हुयी, और उसके समस्त शरीर के रोंगटे खडे हो गये ।
उल्लू जैसे गोल मुँह वाले वो छोटे छोटे पक्षी कुसुम को ही एकटक देख रहे थे । उनकी मुखाकृति ऐसी थी, मानों हँस रहे हों । घबरा कर उसने अन्य वृक्षों पर नजर डाली तो वहाँ भी, उसे एक भी सामान्य पक्षी नजर नहीं आया ।
सभी वैसे ही अजीब से गोल मुँह वाले थे, और एकटक उसी को देख रहे थे ।
तब पहली बार कुसुम को अहसास हुआ कि क्यों वो बगिया उसे रहस्यमय लग रही थी ।
वहाँ अदृश्य में भी किसी के होने का अहसास था । और निश्चय ही कोई था, जो उसके आसपास था । और बेहद पास था ।
भयभीत होकर उसने दयाराम को पुकारा । पर वह जैसे किसी गहरी मायावी नींद में सो रहा था । तभी उसने अपने पुष्ट उरोजों पर किसी का स्पर्श महसूस किया ।
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