टूट रहा हूँ । या तराशा जा रहा हूँ । जैसी वजनदार बात से अपने ह्रदय की गहरी संवेदनाओं को व्यक्त करने वाले स्वपनेश चौहान से आपका परिचय कराते हैं । वैसे स्वपनेश का परिचय देने के लिये मुझे शब्दों का ताना बाना बुनने की जरूरत नहीं है । स्वपनेश अपना परिचय आप ही हैं । स्वपनेश अपने परिचय में कहते हैं - मन की बात - रोज दो आँखों और दो कानों से जो कुछ दिल के समुन्दर तक जाता है । उनमें से जो सतह पर ही रह जाता है । वो तो ज़ुबाँ से बाहर आ जाता है । लेकिन जो समुन्दर की तलहटी में चला जाता है । अक्सर वो ज़ुबाँ से बाहर नहीं आता । और कलम से अक्सर बाहर आ जाता है । जिस तरह से कोई कलश समर्थ नहीं होता कि वो समुन्दर को नाप सके । उसी तरह से ये शब्द भी समर्थ नहीं हैं कि वो पूरी तरह से दिल की भावनाओं को व्यक्त कर सकें । और समर्थ हो भी क्यों ? जिस दिन ये समर्थ हो गये । क्या उस दिन कलम रुक नहीं जाएगी । और कलम का रुक जाना । क्या मेरे लिए धड़कन का रुक जाना नहीं होगा ? खैर.. जब तक धड़कन चल रही है । मेरी कलम भी यहाँ पर चलती रहेगी । और इनका ब्लाग है - आखिरी पथ । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।
09 September 2012
कलम रुकना मतलब धड़कन रुकना - स्वपनेश
टूट रहा हूँ । या तराशा जा रहा हूँ । जैसी वजनदार बात से अपने ह्रदय की गहरी संवेदनाओं को व्यक्त करने वाले स्वपनेश चौहान से आपका परिचय कराते हैं । वैसे स्वपनेश का परिचय देने के लिये मुझे शब्दों का ताना बाना बुनने की जरूरत नहीं है । स्वपनेश अपना परिचय आप ही हैं । स्वपनेश अपने परिचय में कहते हैं - मन की बात - रोज दो आँखों और दो कानों से जो कुछ दिल के समुन्दर तक जाता है । उनमें से जो सतह पर ही रह जाता है । वो तो ज़ुबाँ से बाहर आ जाता है । लेकिन जो समुन्दर की तलहटी में चला जाता है । अक्सर वो ज़ुबाँ से बाहर नहीं आता । और कलम से अक्सर बाहर आ जाता है । जिस तरह से कोई कलश समर्थ नहीं होता कि वो समुन्दर को नाप सके । उसी तरह से ये शब्द भी समर्थ नहीं हैं कि वो पूरी तरह से दिल की भावनाओं को व्यक्त कर सकें । और समर्थ हो भी क्यों ? जिस दिन ये समर्थ हो गये । क्या उस दिन कलम रुक नहीं जाएगी । और कलम का रुक जाना । क्या मेरे लिए धड़कन का रुक जाना नहीं होगा ? खैर.. जब तक धड़कन चल रही है । मेरी कलम भी यहाँ पर चलती रहेगी । और इनका ब्लाग है - आखिरी पथ । ब्लाग पर जाने हेतु क्लिक करें ।