14 March 2011

जैसे मैं लिखना ही भूल गई थी । डॉ. हरदीप संधु


नारी । ममता है । दया है । ताकत है । हौसला है । क्योंकि..? वही तो । सुखी जीवन का । और । दुनिया से भिड़ने का । रास्ता दिखाती है ।..ऐसे हौसलामन्द भावों की कवियित्री और लेखिका सुश्री हरदीप संधु जी प्रत्येक भाव पर बेबाकी से अपने बिचार रखती हैं । और निर्भीकता से समाज को । नारी को जगाने का काम करती हैं । आईये देखें । हरदीप संधु जी अपने बारे में क्या बता रही हैं ।..जन्म । बरनाला ( पंजाब) निवास । सिडनी ... शिक्षा । पी.एच.डी... पिछले कई सालों से देश से बाहर रहते लगा । जैसे मैं लिखना ही भूल गई थी । कलम चुप थी । लेकिन दिल बोल रहा था । देश से बाहर रहते । अपनो की बातें और भी याद आने लगी । अपनी पुरानी यादों को और बिखरे हुए विचारों को शब्द शब्द जोड़कर स्वयं अपने और आपके मन में उजाला करने का मेरा यह एक छोटा सा प्रयास है । जिसे मैंने नाम दिया है " शब्दों का उजाला " । इस ब्लॉग में आपका स्वागत है । BLOG..पतंग । सहज साहित्यशब्दों का उजाला ।
 डॉ. हरदीप संधु । Occupation । Teaching । Location । Sydney । NSW । Australia

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