मैं महसूस करता हूँ ..मैं एक संत हूँ । लोगों के लिये मैं एक राजनीतिज्ञ । संगठनों का मुखिया । या फिर गुरू हूँ । पर वे सभी मेरे व्यक्तित्व के भिन्न प्रतिबिम्ब हैं । पर मैं एक आत्मा हूँ । जो परमात्मा से अभिन्न है । जिसका कोई धर्म मज़हब । जाति या नाम नही । मैं सबसे प्रेम करता हूँ । इसलिये नहीं कि वो भी मुझे प्रेम करते हैं । बल्कि इसलिये कि मैं स्वयं से प्रेम करता हूँ । और वे सब मेरे अपने ही हैं । लोग कहते हैं कि मैंने समाज के लिये बहुत कुछ किया है । पर जब मैं उधर दृष्टि डालता हूँ । तो सोचता हूँ कि अभी और क्या क्या करना है । मुझे हमेशा ही लगता है कि ईश्वर ने मुझे एक उद्देश्य पूरा करने को यहाँ भेजा है । और वहाँ लौटने से पहले मुझे अपना काम करना है । मैं अपने जीवन को नदी के प्रवाह तरह देखना चाहता हूँ । बच्चे की मुस्कान..या फिर फूलों की सुगंध की तरह । कोई नदी कभी नहीं कहती । देखो..मैंने तुम्हें जल दिया । मेरी पूजा करो । कोई मासूम बच्चा अपनी मीठी मुस्कान से आपको भी मुस्कराने पर मजबूर कर देता है । तो बदले में कुछ नहीं चाहता । फूल सुगंध देते हुए नहीं सोचते कि इसने पानी दिया था.. या नहीं । मैं भी ईश्वर से यही कहता हूँ..मुझे भी इन्हीं की तरह निस्वार्थी बना रहने दे । ब्लाग -स्वामी चिन्मयानन्द