लखनऊ उत्तर प्रदेश की डा. निधि टंडन जी संस्कृत में शोध करने के बाद कुछ वर्ष महाविद्यालय में पढ़ा चुकी हैं । जब तक वे अपने मन के भावों को लिखती नहीं हैं । उन्हें चैन नहीं मिलता है । उनके अनुसार - ज़िन्दगी भी एक किताब सी है । जिसमें ढेरों किस्से कहानियां हैं । इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं । तो कुछ में ख़ुशी मुस्कुराती है । प्यार है । गुस्सा है । रूठना मनाना है । सुख दुख हैं । ख्वाब हैं । हकीकत भी है ।... उनका मानना है कि लिखना एक तरह से नव शिशु को जन्म देना है - लिखने में प्रसव सी पीड़ा होती है । जब तक अंतस में विचारों के कोलाहल को शब्दों में बाँधकर उसमें जीवन का संचरण कर कागज़ पर नहीं उकेर देती । चैन नहीं मिलता है । अपने विषय में लिखने की बात पर शब्द जैसे साथ छोड़ देते हैं । जीवन की इस यात्रा के 35 वसंत देख चुकी हूँ ।...फ़िर भी वे हर - रोज अपने में कुछ नया ढूंढ लेती हूँ । अभी तो मेरा खुद से भी कायदे से परिचय नहीं हो पाया है । हाँ लिखने पढ़ने का शौक है । संस्कृत में शोध करने के बाद कुछ वर्ष महाविद्यालय में पढ़ाया । फिर छोड़ दिया । आजकल गृहिणी हूँ । अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश । ब्लाग - ज़िन्दगीनामा