16 March 2011

खुद की तलाश का सफर । अजित वडनेरकर

अपने तरह का इकलौता और अनोखा श्री अजित वडनेरकर जी का ब्लाग "शब्दों का सफ़र" निश्चय ही बारबार और सावधानी से अवलोकन करने लायक है । एक तपस्वी की तरह अजित जी बेहद कठिन कार्य कर रहे हैं । उन्हीं के शब्दों में..उत्पत्ति की तलाश में निकलें । तो शब्दों का बहुत दिलचस्प सफर सामने आता है । लाखों सालों में जैसे इन्सान ने धीरे धीरे अपनी शक्ल बदली । सभ्यता के विकास के बाद से शब्दों ने धीरे धीरे अपने व्यवहार बदले । एक भाषा का शब्द दूसरी भाषा में गया । और अरसे बाद एक तीसरी ही शक्ल में सामने आया । एक निवेदन- शब्द की तलाश दरअसल अपनी जड़ों की तलाश जैसी ही है । शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग अलग होता है । मैं न भाषा विज्ञानी हूँ । और न ही इस विषय का अधिकारिक विद्वान । जिज्ञासावश स्वातःसुखाय जो कुछ खोज रहा हूँ । पढ़ रहा हूँ । समझ रहा हूँ । उसे आसान भाषा में छोटे छोटे आलेखों में आप सबसे साझा करने की कोशिश है । अजित वडनेरकर । बीते 25 वर्षों से पत्रकारिता । प्रिंट व टीवी दोनों माध्यमों में कार्य ।

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