01 April 2011

मायानगरी ने मेरी आदतें शौक में बदल डाली । सतीश पंचम

अच्छा लगता है मुझे । कच्चे आम के टिकोरों से नमक लगाकर खाना । ककडी-खीरे की नरम बतीया कचर-कचर चबाना । इलाहाबादी खरबूजे की भीनी-भीनी खुशबू । उन पर पडे हरे फांक की ललचाती लकीरें ।
अच्छा लगता है मुझे । आम का पना । बौराये आम के पेडो से आती अमराई खूशबू के झोंके । मटर के खेतों से आती छीमीयाही महक । अभी-अभी उपलों की आग में से निकले । चुचके भूने आलूओं को छीलकर हरी मिर्च और नमक की बुकनी लगाकर खाना । अच्छा लगता है मुझे । केले को लपेटकर रोटी संग खाना । या फिर गुड से रोटी चबाना । भुट्टे पर नमक नींबू रगड कर । राह चलते यूँ ही कूचते-चबाना । अच्छा लगता है मुझे । लोग तो कहते हैं कि किसी को जानना हो अगर । उसके खाने की आदतों को देखो । पर अफसोस ! मायानगरी ने मेरी सारी आदतें 'शौक-ए-लज़्ज़त' में बदल डाली हैं । सतीश पंचम । स्थान - वही जिसे अंग्रेजों ने कभी दहेज में दे दिया था । समय - वही जब खेतों में गेहूँ की ओसाई । वोटों की बंटाई और नल के नीचे तरी लेते बच्चों की छपछपाई चल रही है । ब्लाग..सफ़ेद घर

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