18 March 2011

असली सुख-दुख हमारे मन का विषय है । हंसराज 'सुज्ञ'


हंसों के राजा  'सुज्ञ' जी यानी  हंसराज 'सुज्ञ' जी का परिचय कराना बेकार है । अरे भाई इन साधु और सज्जन..गम्भीर दार्शनिक बात कहने वाले 'सुज्ञ' जी को कौन नहीं जानता । आप इनके ब्लाग्स के किसी भी लेख को देखें । उसमें गम्भीर दार्शनिक तत्व विवेचन की झलक अवश्य होगी । लिहाजा मैं बनाऊ बाबा और ये असली बाबा..इस तरह हमारी दोस्ती है । इनकी नयी हँसाऊ + दार्शनिक रचना का अंश आगे देखें ।
तो बुरा सा टकला लेकर भी सुन्दर टकले की भ्रांत धारणा में मैं खुश था । वहां मनोज जी शानदार टकला होते हुए भी बुरे टकले की भ्रांत धारणा से दुखी थे । हम देर तक अपनी अपनी मूर्खता पर हँसते रहे । इसी बात पर हम दर्शनशास्त्र की गहराई में उतर गये । क्या सुख और दुख ऐसे ही आभासी है ? क्या हम दूसरों को देखकर उदासीयां मोल लेते है । या दूसरो को देखकर आभासी खुशी में ही जी लेते है । ज्ञानी सही कहते हैं । सुख-दुख भ्रांतियां है । और असली सुख-दुख हमारे मन का विषय है । हंसराज 'सुज्ञ' । Location । मुंबई । महाराष्ट्र । India । ब्लाग.. सुज्ञ सु्बोध निरामिष

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