27 April 2011

शब्द भावनाओं की अभिव्यक्ति । प्रियंका राठौर

प्रियंका जी का..विचार प्रवाह..जब बहना शुरू होता है । तो उसको देखते..सुनते..गुनते..हम सब भी अविरल उनके साथ ही बहने लगते हैं । फ़िर ये बहाव कहाँ जाकर समाप्त होगा । इसका अहसास ही नहीं रहता । उनके शब्दों में दर्द का अहसास...अहसास का दर्द आप भी महसूस करें - बूढी हड्डियों में है ना दम । हाथ पैरों में है अब कम्पन । फिर भी हर दिन हर पल । नातिन को लिए गोद में अस्पतालों के चक्कर लगाती है ।... और फ़िर माँ की ममता और महानता का बोध होना देखिये - भरे दिल में उम्मीद की आस । यूँ ही जीवन जीती जाती है  । उस पल का कोई मोल नहीं । हाँ - ऐसी होती है माँ की ममता । जिसका कोई तोल नहीं ।..तो ये है । प्रियंका जी का विचार प्रवाह जो हमें दूर तक..बहुत दूर तक ले जाता है । आगे वे कहतीं हैं - शब्द भावनाओं की अभिव्यक्ति हैं । जिनसे उलझना मेरे जीवन का हिस्सा है । कुछ साहित्य से जुडाव लिखने को प्रेरित करता है । कुछ भागती हुई जिन्दगी..इसी अहसास के साथ अपनी जीवन यात्रा के विचार प्रवाह को आप सबके सामने रख रही हूँ । अतः किसी साहित्यिक गलती के लिए माफी की हकदार भी हूँ । ब्लाग - विचार प्रवाह

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