24 March 2011

हाँ कल अपनी भी बारी है । संध्या शर्मा

धरे रह गए साधन सारे । नाकाम तकनीकें सारी हैं । क्यों रोना अब देख तबाही । जब खुद ही की तैयारी है । कुदरत के कानून के आगे । क्या औकात हमारी है । थमा नहीं ये कहर देख लो । वह तो अब भी जारी है । संभल सको तो संभलो वर्ना । कल अपनी भी बारी है..। (.जी हाँ आपने सही कहा संध्या जी ) ।..प्रकृति के तांडव से भला किसकी रिश्तेदारी है । कल जापान की थी । तो आगे अपनी भी बारी है ।..ऐसे ही झकझोरने वाले विचार संध्या जी अपनी कविताओं में व्यक्त करती हैं । ( आगे संध्या जी अपने बारे में क्या कह रही हैं )  लिखने का शौक तो बचपन से था । ब्लॉग ने मेरी भावनाओं को आप तक पहुँचाने की राह आसान कर दी । काफी भावुक और संवेदनशील हूँ । कभी अपने भीतर तो कभी अपने आसपास जो घटित होते देखती हूँ । तो मन कुछ कहता है । बस उसे ही एक रचना का रूप दे देती हूँ । आपके आशीर्वाद और सराहना की आस रखती हूँ । Location: Nagpur : Maharashtra : India ब्लाग...मैं और मेरी कवितायें

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