मुझे याद है । मैंने एक बार जेन्नी शबनम जी से कहा था । आपकी कवितायें अनोखी ही हैं । और आपका नाम बङा अजीव है । इस पर जेन्नी जी ने कहा था ।..मेरा नाम अजीब है । इसीलिये मेरी कवितायें भी अजीब यानी अनोखी हैं । मैं जो भी लिखती हूँ । गहरे डूबकर लिखती हूँ । देखिये आगे । उनकी कविता के एक नायिका के भाव.. कभी अग्नि बनकर । जो उस रात दहक रही थी । और मैं पिघल कर । तुम्हारे सांचे में ढल रही थी । और तुम इन सबसे अनभिज्ञ । महज़ कर्त्तव्य निभा रहे थे । ( और भी देखिये )..कभी फूलों की ख़ुशबू बनकर । जो उस रात । तुम्हारे आलिंगन से । मुझमें समा गई । और रहेगी । उम्र भर । ( और ये भी ) ..तुम कहते हो । अपनी कैद से आज़ाद हो जाओ । बँधे हाँथ मेरे । सींखचे कैसे तोडूँ ? ( और एक इच्छा )..कभी धरा बनकर । जिसकी गोद में । निर्भय सो जाती हूँ । इस कामना के साथ कि । अंतिम क्षणों तक । यूँ हीं आँखें मुँदी रहूँ । तुम मेरे बालों को । सहलाते रहो । और मैं सदा के लिए सो जाऊँ । ( आत्मकथ्य ) ये मन की अभिव्यक्ति का सफ़र है । जो प्रतिपल मन में उपजता है । ब्लाग..लम्हों का सफ़र