21 February 2011

बालमन बुजुर्ग कवि..कैलाश सी शर्मा

जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों से परिपक्व होने के बाद भी श्री कैलाश जी के मन में " बच्चों का कोना " भी है । जहाँ एक सरल ह्रदय निष्कपट मासूम बच्चा कैलाश पंख होने पर..आसमान में उड़कर जाता, बादल को छूकर आ जाता  . सुबह नाश्ता घर पर करता, नानी के घर खाना खाता..जैसे बालसुलभ मनोहर भाव व्यक्त करता है । वहीं कैलाश जी के अन्दर एक कवि भी है । जो अपने आसपास की चीजों  से व्यथित होकर " कशिश " में अपनी वेदना आदि भावों को..My Poetry द्वारा व्यक्त करता है ।..यमुने कैसे  देखूँ तेरा  यह वैधव्य  रूप , मैंने तुमको प्रिय आलिंगन में देखा है ।कैसे यमुने तेरे  नयनों मैं जल देखूँ , मैंने इनमें खुशियों का यौवन देखा है ।..आईये देखें कैलाश जी क्या कह रहें हैं ।..अश्रु क्या है ? दर्द की मुस्कान है । पीर क्या है ? प्यार का प्रतिदान है । जी रहे हैं सब । जीने का अर्थ जाने बिना । ज़िन्दगी क्या है ? मृत्यु का अहसान है ।..प्रयास है । जुड़े रहने का बच्चों से । जो देते हैं । प्रेरणा जीने की । 

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