संभवतः हमारे बीच सबसे बुजुर्ग शास्त्री जी के परिचय के लिये एक बङी किताब लिखूँ । तब बात बने । लेकिन तब तक आप पूर्व और पूर्ण परिचय होने के बाद भी यहाँ पढें । परिचय से री परिचय के बाद । छोङिये अन्य सब बातें । और 19 मार्च को आने वाली होली को श्री शास्त्री जी की मनोहर कविता से मन की गलियों को मटकाते हुये 1 माह पूर्व खेलें ।..आँचल में प्यार लेकर, भीनी फुहार लेकर. आई होली, आई होली, आई होली रे । चटक रही सेंमल की फलियाँ, चलती मस्त बयारें । मटक रही हैं मन की गलियाँ, बजते ढोल नगारे । निर्मल रसधार लेकर, फूलों के हार लेकर, आई होली, आई होली, आई होली रे । मीठे सुर में बोल रही है । बागों में कोयलिया । कानों में रस घोल रही है, कान्हा की बाँसुरिया । रंगों की धार लेकर, सोलह सिंगार लेकर, आई होली, आई होली, आई होली रे । लहराती खेतों में फसलें, तन-मन है लहराया. वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया । महकी मनुहार लेकर, गुझिया उपहार लेकर, आई होली, आई होली, आई होली रे । BLOG..। उच्चारण । मयंक । साभार.श्री शास्त्री जी के ब्लाग से ।